इंदौर में 1,000 करोड़ की होप मिल जमीन पर प्रशासन का कब्जा: सरकार की हुई 22.24 एकड़ जमीन, बम परिवार के हाथ से निकली संपत्ति

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इंदौर में लंबे समय से विवादों में घिरी होप टेक्सटाइल (भंडारी) मिल की 22.24 एकड़ जमीन आखिरकार जिला प्रशासन ने अपने कब्जे में ले ली है। करीब 1,000 करोड़ रुपए कीमत की इस बेशकीमती जमीन को गुरुवार को एसडीएम प्रदीप सोनी की टीम ने कब्जे में लेकर सरकारी घोषित कर दिया। प्रशासन ने जमीन पर बोर्ड भी लगा दिया है। यह जमीन अब तक कांग्रेस से भाजपा में आए नेता अक्षय बम के पिता कांतिलाल बम के कब्जे में थी।

2012 से चल रहा था विवाद

इस जमीन का विवाद कोई नया नहीं है। अक्टूबर 2012 में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने इसे सरकारी घोषित किया था। इसके खिलाफ कांति बम ने कोर्ट में याचिका दायर की। अप्रैल 2025 में कोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को तकनीकी आधार पर निरस्त कर दिया और कहा कि विधिवत सुनवाई कराई जाए। इसके बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने दोबारा बम परिवार से जवाब तलब किया और 20 अगस्त 2025 को आदेश जारी किया। इसी आदेश के तहत प्रशासन ने गुरुवार को कब्जा ले लिया।

लीज की शर्तों का उल्लंघन

रिकॉर्ड के मुताबिक, 1939 में यह जमीन नंदलाल भंडारी एंड संस को 99 साल की लीज पर औद्योगिक उपयोग (टेक्सटाइल मिल) के लिए दी गई थी। 1982 में सरकार ने जमीन के एक हिस्से को वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति भी इस शर्त पर दी थी कि उससे मिल का नवीनीकरण और मजदूरों का पुनर्वास किया जाएगा। लेकिन न तो मिल का नवीनीकरण हुआ और न ही मजदूरों का पुनर्वास।

कलेक्टर कोर्ट के आदेश में साफ कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार 99 साल की लीज से स्वामित्व का अधिकार नहीं मिलता। चूंकि मिल अब वहां मौजूद ही नहीं है, इसलिए लीज की शर्तों का आधार ही समाप्त हो गया।

न्यू सियागंज बनाकर जमीन बेची

जांच में यह भी सामने आया कि जिस 4.5 एकड़ पर वाणिज्यिक प्रोजेक्ट की अनुमति थी, उसके बजाय करीब 10.2 एकड़ जमीन पर न्यू सियागंज विकसित कर बेच दी गई। जबकि बाकी 12 एकड़ जमीन खाली पड़ी है और बाउंड्रीवाल से घिरी हुई है। इसे भी लीज उल्लंघन माना गया।

प्रशासन का कब्जा

कलेक्टर कोर्ट ने बम परिवार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि जमीन की बिक्री और उपयोग लीज शर्तों के विपरीत हुआ है। इसके चलते 22.24 एकड़ जमीन को सरकारी घोषित कर प्रशासन ने कब्जे में ले लिया। मौके पर कार्रवाई पूरी होने के बाद टीम ने जमीन पर सरकारी संपत्ति का बोर्ड भी लगा दिया।

इस फैसले के साथ इंदौर की सबसे चर्चित और विवादित जमीनों में से एक पर प्रशासन का कब्जा हो गया है। अब इस भूमि का भविष्य सरकार की आगामी नीति और फैसलों पर निर्भर करेगा।


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