भोपाल / मध्यप्रदेश में कोरोना के 6 एक्टिव केस है। जबकि राजधानी भोपाल की बात करें तो यहां के सरकारी अस्पतालों में कोरोना की जांच तक नहीं हो रही है। अधिकारियों को कहना है कि फिलहाल कोविड को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं मिली है।
देश में कोरोना वायरस के दो नए वेरिएंट सामने आने के बाद मरीजों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कई राज्यों में मरीज तेजी से बढ़े हैं। मध्यप्रदेश में भी 6 एक्टिव केस है। इनमें इंदौर में 5 और उज्जैन में 1 कोविड केस सामने आया है। राजधानी भोपाल की बात करें तो यहां के सरकारी अस्पतालों में कोरोना की जांच तक नहीं हो रही है। जबकि केंद्र सरकार द्वारा संचालित एम्स में कोरोना के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।
काेरोना मरीजों की जांच के आदेश का इंतजार
भोपाल में सरकारी अस्पताल संदिग्ध काेरोना मरीजों की जांच के आदेश का इंतजार कर रहे हैं। एम्स छोड़ कर किसी सरकारी अस्पताल में जांच नहीं की जा रही है। अधिकारियों को कहना है कि फिलहाल कोविड को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं मिली है।
नए वेरिएंट का कितना है असर
JN.1, ओमिक्रॉन के BA2.86 का एक स्ट्रेन है। इसे अगस्त 2023 में पहली बार देखा गया था। दिसंबर 2023 में WHO ने इसे ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित किया। इसमें करीब 30 म्यूटेशन्स हैं, जो इम्यूनिटी कमजोर करते हैं। अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अनुसार JN.1 अन्य वैरिएंट की तुलना में ज्यादा आसानी से फैलता है, लेकिन यह बहुत गंभीर नहीं है। दुनिया के कई हिस्सों में यह सबसे आम वैरिएंट बना हुआ है। JN.1 वैरिएंट के लक्षण कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक रह सकते हैं। अगर आपके लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं, तो हो सकता है कि आपको लंबे समय तक रहने वाला कोविड हो। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें COVID-19 के कुछ लक्षण ठीक होने के बाद भी बने रहते हैं।
एम्स के डॉक्टर बोले डरने की बात नहीं
भोपाल एम्स के डॉक्टरों ने लोगों को कोरोन के प्रति जागरूक रहने की बात कही है। चिकित्सकों ने कहा है कि JN-1 तेजी से फैलता जरूर है, लेकिन यह आमतौर पर गंभीर बीमारी पैदा नहीं करता। फिर भी, दुनिया के कई हिस्सों में यह वैरिएंट सबसे आम बना हुआ है, जो सतर्कता की जरूरत को दर्शाता है। कोरोना के बढ़ते मामलों की सटीक वजह जानने और किस वैरिएंट का कितना प्रभाव है, इसकी पुष्टि के लिए ज्यादा से ज्यादा संदिग्ध मरीजों की जांच और उनके सैंपल्स की जीनोम सीक्वेंसिंग कराना अनिवार्य है।
जेपी, हमीदिया में नहीं हो रही जांच
भोपाल के सरकारी जेपी अस्पताल को अब भी स्वास्थ्य विभाग से आदेश आने का इंतजार है। वहीं, गांधी मेडिकल कॉलेज (GMC) में स्थित स्टेट वायरोलॉजी लैब ने तो शासन से आरटी-पीसीआर किट उपलब्ध कराने की मांग की है, जो जांच की धीमी गति का संकेत है। वहीं कोविड वायरस को फैलने से रोकने, उसके असर की बारीकी से निगरानी करने और सटीक जानकारी देने के मकसद से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मध्य प्रदेश की स्टेट वायरोलॉजी लैब को 5 करोड़ रुपए की जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन दी थी। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मशीन का इस्तेमाल ही नहीं किया जा रहा है।