खाद के लिए किसानों को पासबुक दस्तावेजों की लाइन

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सीहोर।बुधनी विधानसभा क्षेत्र में किसान यूरिया के लिए जद्दोजहद कर रहा है। मौसम खुलते ही यूरिया की आवश्यकता किसानों को लगने लगी है। लेकिन सरकार किसानों तक यूरिया पहुंचने में नाकाम साबित हुई है। खुले बाजार में जहां यूरिया खाद मनमाने दामों पर बेचा जा रहा है। वही सेवा सहकारी समितियां में पर्याप्त खाद की उपलब्धता नहीं होने से किसान परेशान है। यूरिया लेने के लिए किसानों को पासबुक की लाइन लगाना पड़ी।
स्थिति भैरुंदा(नसरुल्लागंज) के तहत आने वाली निपानिया समिति में देखने को मिली। कांग्रेस नेता विक्रम मस्ताल शर्मा ने इस मामले में केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान को आडें हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि बुधनी विधानसभा का किसान यूरिया के लिए परेशान है। केंद्रीय कृषि मंत्री के क्षेत्र में ही ऐसी स्थिति निर्मित है। किसने की आय दोगुनी करने का दावा करने वाली सरकार किसानों तक यूरिया पहुंचने में ही नाकाम साबित हुई है।


यूरिया लेने पासबुक की कतार

यूरिया के लिए किसान कितना परेशान है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि समिति के गोदाम पर पासबुक की कतार अल सुबह से ही लग गई। 5 घंटे से भी अधिक का समय बीतने के बावजूद भी किसानों को खाद की उपलब्धता नहीं हो सकी थी। भगदड़ की स्थिति निर्मित ना हो इसलिए किसानों ने स्वयं खड़े न होकर अपनी पासबुकों की लाइन लगा दी। समिति के मुताबिक यूरिया की बोरियां सीमित होने के कारण प्रत्येक किसान को एक बोरी यूरिया देने का निर्णय लिया गया है। इसके बाद बाकी बची बोरिया
जितने किसानों को मिल सकेगी उतने में वितरण कर दिया जाएगा


साढ़े तीन सौ टन में से 80 टन पहुंचा यूरिया

निपानिया समिति से मिली जानकारी के मुताबिक 10 से 12 दिनों के बाद यूरिया का ट्रक आया है। ट्रक आने की सूचना लगते ही किसानों का हुजुम यहां पर एकत्रित हो गया। देखते ही देखते एक दो नहीं बल्कि 308 किसान अपनी पासबुक लेकर समिति के कार्यालय में पहुंचे। जबकि ट्रक में कुल 540 बोरी यूरिया आया। समिति ने दर्ज किसानों के मुताबिक 350 टन यूरिया की डिमांड दी थी। जिसमें से अभी तक अनुमानित 75 से 80 टन यूरिया ही समिति के पास पहुंच सका है। लगभग 270 टन यूरिया डिमांड से अभी भी यहां पर कम है। समिति के द्वारा यहां पर 250 टन डीएपी की डिमांड भी की थी। लेकिन उसके मुकाबले अभी तक 130 टन डीएपी ही उपलब्ध हो सका है। किसान यूरिया के अतिरिक्त डीएपी के लिए भी परेशान है।

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