डीआर न्यूज़ इंडिया टॉड, श्यामपुर/चरनाल।
सावन के महीने में परंपराओं और उत्साह से भरपूर अनोखी ग्रामीण प्रतियोगिता – गेड़ी प्रतियोगिता – सोमवार को चरनाल के मुख्य बाजार में धूमधाम से आयोजित हुई। ढोलों की थाप, दर्शकों का उत्साह और प्रतिभागियों का जोश इस प्रतियोगिता को खास बना रहा था। यह आयोजन लगातार 36 वर्षों से हो रहा है और हर बार की तरह इस बार भी स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ आसपास के जिलों से आए प्रतिभागियों और दर्शकों ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
36 साल पुरानी परंपरा
चरनाल और आसपास के गांवों में सावन के महीने में गेड़ी प्रतियोगिता आयोजित करने की परंपरा 36 वर्ष पहले शुरू हुई थी। तब से यह सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि ग्रामीणों के आपसी मेल-जोल, मनोरंजन और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन चुकी है। इस बार भी आयोजन की भव्यता ने लोगों का दिल जीत लिया। सुबह 11 बजे से शुरू हुई प्रतियोगिता देर शाम तक ढोल की थाप और दर्शकों की तालियों के बीच जारी रही।
धक्का और ठोकर – दो पद्धतियों में हुआ मुकाबला
इस प्रतियोगिता की खासियत यह है कि इसे दो पद्धतियों में खेला जाता है – धक्का और ठोकर।
- धक्का प्रतियोगिता में खिलाड़ी गेड़ी पर सवार होकर एक-दूसरे को धक्का देकर गिराने की कोशिश करते हैं। इसके लिए 4 राउंड तय किए गए थे।
- ठोकर प्रतियोगिता में खिलाड़ी अपने पैरों से विरोधी की गेड़ी को ठोकर मारकर संतुलन बिगाड़ते हैं। इसमें 6 राउंड खेले गए।
इस साल धक्का प्रतियोगिता में 45 खिलाड़ी और ठोकर प्रतियोगिता में 15 खिलाड़ी शामिल हुए। हर राउंड में रोमांच और प्रतिस्पर्धा देखने लायक थी।
दर्शकों का उत्साह और भीड़
प्रतियोगिता को देखने के लिए चरनाल ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों से लोग पहुंचे। मुख्य बाजार में जगह-जगह लोगों की भीड़ उमड़ी हुई थी। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सबकी निगाहें गेड़ी पर सवार युवाओं पर टिकी थीं। दर्शक हर सफल धक्का या ठोकर पर जोरदार तालियां और जयकारे लगा रहे थे।
पुरस्कार और प्रायोजक
इस वर्ष भी प्रतियोगिता में विजेताओं के लिए आकर्षक इनाम रखे गए थे।
माँ नर्मदा बालकानद आयसर ट्रैक्टर के संचालक राजेश गौर ने प्रायोजक के रूप में प्रतियोगिता को सहयोग दिया। विजेताओं को वॉशिंग मशीन सहित कई उपयोगी पुरस्कार भेंट किए गए। इसके अलावा उपविजेताओं को भी सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए गए।
ढोल-नगाड़ों और जोश का संगम
प्रतियोगिता का असली आकर्षण था ढोलों की गूंज। जैसे ही कोई खिलाड़ी संतुलन खोकर गिरता, ढोलची जोर से थाप देते और माहौल में ऊर्जा भर देते। ढोल की ताल के साथ-साथ दर्शकों की हूटिंग और जयकारों ने पूरे कार्यक्रम को जीवंत बनाए रखा। बच्चे ढोल की थाप पर नाचते नजर आए, तो बुजुर्ग भी मुस्कुराते हुए खेल का आनंद लेते रहे।
खिलाड़ियों का संघर्ष और रोमांच
धक्का प्रतियोगिता में कई मुकाबले बेहद करीबी रहे। कुछ खिलाड़ी अंतिम क्षण तक संतुलन बनाए रखने में सफल हुए, जबकि कुछ एक पल की चूक से गिर गए। ठोकर प्रतियोगिता में पैर की गति और संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती थी। कई बार खिलाड़ी खुद को बचाने के चक्कर में गिर पड़े, तो कभी विरोधी के एक तेज वार से मैदान से बाहर हो गए।

सुरक्षा व्यवस्था और आयोजन की तैयारी
आयोजकों ने प्रतियोगिता से पहले खिलाड़ियों के लिए विशेष निर्देश जारी किए थे, ताकि चोट-चपेट से बचा जा सके। आयोजन स्थल के चारों ओर रस्सी लगाई गई थी, जिससे दर्शक और खिलाड़ी अलग-अलग रहें। साथ ही प्राथमिक उपचार के लिए एक मेडिकल टीम भी मौजूद थी।
ग्रामीण संस्कृति की झलक
गेड़ी प्रतियोगिता सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि ग्रामीण संस्कृति का आईना है। इसमें ताकत, संतुलन, सहनशक्ति और रणनीति – सबका मेल होता है। खासकर सावन के महीने में यह आयोजन ग्रामीणों के लिए उत्सव का रूप ले लेता है, जिसमें सभी उम्र के लोग शामिल होते हैं।
विजेताओं का सम्मान और समापन
शाम को ढलते सूरज के साथ प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा की गई। मंच पर विजेताओं को पुरस्कार, ट्रॉफी और फूलमालाएं पहनाकर सम्मानित किया गया। दर्शकों ने विजेताओं पर फूल बरसाए और ढोल-नगाड़ों के साथ समापन हुआ।
चरनाल की गेड़ी प्रतियोगिता ने एक बार फिर साबित किया कि ग्रामीण खेलों की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। न सिर्फ स्थानीय लोग बल्कि बाहर से आए दर्शकों ने भी इस आयोजन की सराहना की। ढोल की थाप, खिलाड़ियों का जोश, भीड़ का उत्साह और 36 साल पुरानी परंपरा – सबने मिलकर इसे यादगार बना दिया।