विदिशा
शहर से 25 किमी दूर चितोरिया गांव में दुर्गा मंदिर सोसायटी और बैंकों में केसीसी की तर्ज पर ग्रामीणों को कर्ज वितरित करता है। 30 मार्च को सोसायटी में कर्ज जमा करने की आखिरी तारीख होती है। वैशाख पूर्णिमा पर मंदिर के कर्ज जमा करने का आखिरी दिन होता है। मिलने वाला ऋण वैशाख पूर्णिमा पर ब्याज सहित जमा करना होता है।
कर्ज पर मिलने वाले ब्याज से मंदिर का संचालन किया जाता है और बची हुई राशि से मंदिर का कार्य करवाया जाता है। वैशाख पूर्णिमा पर दिनभर की बैठक होती
है। इस बैठक के एक दिन पहले डोंडी पिटवाकर ग्रामीणों को सूचना दी जाती है। पूर्णिमा पर सभी ग्रामीण एकत्रित होते हैं और पिछले साल लिए कर्ज को ब्याज सहित जमा करते हैं। सभी ग्रामीणों का कर्ज जमा होने के बाद उसमें से ब्याज अलग कर लिया जाता है और मूलधन अलग किया जाता है। ब्याज मंदिर के संचालन के लिए रखा जाता है और मूलधन फिर से बांट दिया जाता है। ग्रामीण अपनी आवश्यकता के अनुसार कर्ज लेते हैं। खास बात यह यह है कि ग्रामीण पूरी ईमानदारी के साथ मंदिर का पैसा तय तिथि पर जमा करते हैं। कोई भी ग्रामीण मंदिर का पैसा न खाता है न जमा करने में देरी करता है।
ग्रामीण कर्ज की राशि का सालभर करते हैं उपयोग, खुद आगे आकर तय तारीख तक करते हैं जमा
चितरिया गांव प्रसिद्ध माता मंदिर। इनसेट : प्रतिमा ।
जमीन से ऊपर बना मंदिर, तीन रूप बदलती हैं माता
सादा लिखा-पढ़ी के साथ जमानतदार जरूरी
ग्रामीणों ने बताया कि मंदिर की किताब पर लिखा-पढ़ी होने के अलावा जमानतदार जरूरी है। किसी कारणवश कर्जदार ग्रामीण यदि कर्ज नहीं चुकाता तो जमानतदार कर्ज चुकाएगा या फिर कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी जमानतदार की होती है। कर्जदार, जमानतदार और कर्ज लेने वाले समिति सदस्यों के हस्ताक्षर होते हैं।
ग्रामीण भगवान सिंह रघुवंशी ने बताया कि 85 वाय 90 यानी 7,650 वर्गफीट में मंदिर बना है। इतनी ही जगह मंदिर के बाहर पड़ी है। मंदिर के नाम पर 6 बीघा जमीन है, जिसे कोली पर दी जाती है। उससे मिलने वाली राशि को मंदिर के संचालन में उपयोग किया जाता है। यह मंदिर तीसरी बार बना है, लेकिन दुर्गा प्रतिमा यथास्थिति में है। पहले इस प्रतिमा को ऊपर उठाने के कई प्रयास किए गए, लेकिन विद्वानों से सलाह मशविरा करने के बाद प्रतिमा को ऊपर नहीं उठाया गया, इसलिए जमीन से ऊपर ही मंदिर बना दिया। प्रतिमा आज भी नीचे है। ग्रामीण सरदार सिंह रघुवंशी ने बताया कि माता तीन रूप बदलती हैं।
10 लाख रुपए तक ले सकते हैं कर्ज
वैसे तो ग्रामीण अपनी आवश्यकता अनुसार कर्ज लेते हैं, लेकिन एक हजार रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक कर्ज 2 प्रतिशत की दर से मंदिर से लिया जा सकता है। पहले मंदिर की समिति थी, जो भंग हो चुकी है, लेकिन अब मंदिर से जुड़े लोग इस व्यवस्था को बनाए हुए हैं। यह व्यवस्था विश्वास के साथ चल रही है। कोई भी व्यक्ति मंदिर काएक का एक पैसा भी निजी उपयोग में नहीं करता, न खाता है।