सीहोर / गर्मी के दिनों में सूखी नदियों, कुओं और अन्य जलस्त्रोतों ने सरकार के जल गंगा संवध्रन अभियान की कलई खोल दी है। जिला गहरे जलसंकट के दौर से गुजर रहा है। कई कस्बों और गांवों में पानी के लिए मारामारी मची हुई है। शहरी क्षेत्रों में लोगों को अलग से पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है तो ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के लिए लोगों को दो से तीन किमी दूर का सफर करना पड़ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी प्रशासन ने जलस्त्रोतों को रिचार्ज करने, साफ -सफाई और गहरीकरण करने योजना बनाई है। जल गंगा संर्वधन अभियान शुरू किया, जो 30 जून तक चलेगा। इसमें जितना काम होना चाहिए उतना नहीं हो रहा है। हकीकत यह है कि अभी भी नदियों, कुओं और अन्य जलस्स्त्रोतों में पानी बढ़ाने और पानी बचाने के ठोस इंतजाम नहीं हैं। हर साल अच्छी बारिश फिर भी गर्मी के मौसम में जलस्तर पाताल में जाने से दिक्कत आती है।
जिले में शहरों से लेकर गांवों तक में बने पानी संकट ने लोगों की नींद उड़ाकर रख दी है। मौजूदा समय में 200 से अधिक गांव भीषण पानी समस्या का सामना कर रहे हैं। इनमें लोगों को सुबह से शाम पानी इंतजाम करने में हो रही है। एक से दो किमी तक तक से साईकिल, कुप्पी, बैलगाड़ी या फिर अन्य साधन से पानी लाना पड़ रहा है। सिद्दीकगंज में कहने को वर्षों पुरानी नल जल योजना है, लेकिन कई क्षेत्रों में इससे पानी नहीं मिल रहा है। कई जगह तो पाइप लाइन नहीं है तो कही कनेक्शन नहीं है। निजी टैंकर से पानी की व्यवस्था करना पड़ती है। ग्रामीण बताते हैं कि योजना की पाइप लाइन भी क्षतिग्रस्त हो गई है, लेकिन ग्राम पंचायत ध्यान नहीं दे रही है।
इतना लगता है शहर, गांव में पानी
शासकीय रिकॉर्ड के अनुसार गांवों मे एक व्यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर और शहर में 120 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इस पानी में पीना, कपड़े धोना, नहाना सहित अन्य तमाम काम शामिल है। वर्तमान में इससे कई गुना ज्यादा पानी लोग खर्च कर बर्बाद करते हैं। पीएचइ के मुताबिक जिले के 1250 गांव में दो लाख 32 हजार परिवार निवास करते हैं। चार दशक पहले करीब 200 हैंडपंप, 200 के आसपास ही किसानों के पास ट्यूबवेल थे। अब 8 हजार से ज्यादा पीएचइ के बोर और 35 हजार से ज्यादा किसान व अन्य लोगों के ट्यूबेवल हैं।
बाधाएं दूर करना जरूरी है
पानी सहेजने तालाब, स्टॉप डैम बने हैं, लेकिन उनमें से कई क्षतिग्रस्त पड़े हैं। इनमें बारिश का पानी स्टोर नहीं पाता और व्यर्थ निकल बर्बाद हो जाता है। जल संसाधन विभाग के अधीन से ज्यादा हालत खराब ग्राम पंचायतों के तहत आने वाले तालाब, तलैया की हैं। इनकी मरमत होना चाहिए। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लेकर लोगों को जागरूक करना चाहिए। अभी देखा जाए ता इसके बारे में कई लोगों को पता ही नहीं है कि आखिर होता क्या है। जो जलस्त्रोत पानी मुहैया कराने में ज्यादा भूमिका निभाता उसका गहरीकरण जरूरी है।
प्रशासन का दावा
एडवोकेट, पर्यावरण प्रेमी और जल संरक्षण की आमजन में अलख जगाने वाले आष्टा के धीरज धारवां बताते हैं कि वर्तमान में पानी की स्थिति देख भविष्य की चिंता बढ़ गई है। शासन, प्रशासन अपने स्तर से काम कर रहा, लेकिन आमजन को जल संरक्षण के लिए आगे आना होगा। जिन लोगों के घर रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं लगे उनको लगाना चाहिए। नदी, नालों में जगह-जगह छोटे चैक डैम भी बनाना चाहिए। जहां जरूरत हो वहां नदी, नाले, तालाब, तलैया का गहरीकरण होना चाहिए। इसके अतिरक्त दूसरे इंतजाम भी हो।
सीहोर एसडीएम तन्मय वर्मा बताते हैं कि जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत लगातार काम जारी है। क्षेत्र में संबंधित जनपद पंचायत क्षेत्र के सीइओ की निगरानी में यह काम हो रहा है। इसमें कुएं, बावड़ी, नदियों आदि की साफ-सफाई और गहरीकरण हो रहा है। इधर पीएचइ के इइ प्रदीप सक्सेना बताते हैं कि जितना बारिश का पानी जमीन में जाना चाहिए उतना नहीं जा रहा है। वर्तमान समय में 40 से 50 प्रतिशत पानी जा रहा। जितना हम जमीन से पानी निकलते उसका 50 प्रतिशत भी जमीन में जाता है तो संकट दूर हो सकता है।
एक्सपर्ट व्यू
हमारे जिले में जल भंडार
प्रमुख नदियां रू 05 (नर्मदा, पार्वती, नेवज, दूधी, कुलांस)
बांध रू 207
तालाब रू 66
हैंडपंप रू 8792
कुएं रू 10000 करीब
औसत बारिश रू 1148.4 मिमी
सहेज पाते पानी रू 40 से 50त्न