जिसने दसों इंद्रियों को जीत लिया वही दशरथ है-संत उद्ववदास महाराज

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सीहोर / शहर के रुकमणी गार्डन में चित्रांश समाज और अखिल भारतीय कायस्थ महासभा सीहोर के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के तीसरे दिन संत उद्ववदास ने कहाकि भगवान श्रीराम को भक्ति से पाया जा सकता है। धरती पर अधर्म का बोलबाला होता है तब भगवान का किसी न किसी रूप में अवतार होता है। भगवान चारों दिशाओं में विद्यमान है। इन्हें प्राप्त करने का मार्ग मात्र सच्चे मन की भक्ति ही है। रामचरित्र मानस में ऐसे दो ही पात्र है, जिन्होंने सुख की प्राप्ति हेतु अलग-अलग मार्गों का अनुसरण किया है। यह पात्र है दशानन अर्थात रावण और राजा दशरथ। दशानन का अर्थ है, वह व्यक्ति जो मन के वशीभूत हो दशों इंद्रियों को सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए लगाकर सदैव प्रयत्नशील रहता हो, वहीं दशरथ वह चरित्र है, जिसने दशों इंद्रियों को जीत लिया हो और जो सदैव ईश्वर की भक्ति में ही तत्पर रहता है। भगवान श्रीराम ने भी राजा दशरथ के यहां पर इसी भक्ति और साधना को देखते हुए जन्म लिया। भगवान सर्वत्र व्याप्त है। प्रेम से पुकारने व सच्चे मन से सुमिरन करने पर भगवान कहीं भी प्रकट हो सकते है। भगवान राम के जन्म की व्याख्या करते हुए बताया कि सतकृपा के तप से भगवान ने राजा दशरथ व रानी कौशल्या के घर जन्म लिया।
उन्होंने कहाकि दशरथ और दशानन, रामायण के दो अलग-अलग हैं। दशरथ को राजा दशरथ के रूप में जाना जाता है, जो अयोध्या के राजा और भगवान राम के पिता थे। दूसरी ओर, दशानन रावण का दूसरा नाम है, जो लंका का राजा था। दशानन शब्द का अर्थ है दस सिर वाला, जो रावण के दस सिरों का प्रतीक है। दशरथ इंद्रियों को नियंत्रित करने वाला व्यक्ति है, जबकि दशानन दस इंद्रियों को भोगों में उलझाने वाला व्यक्ति है।
प्रत्येक जीव सुख की तलाश में भटक रहा
संत उद्ववदास महाराज ने कहाकि पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक जीव सुख की तलाश में भटक रहा है, जिससे भी पूछो कि तुम्हे क्या चाहिए तो वह एक ही बात कहता है कि मुझे असीम सुख की तलाश है। सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य मन के वसीभूत हो आवश्यक रसों की खोज के लिए भौतिक संसाधनों का उपयोग करने में लगा हुआ है। भौतिक संसाधनों से हम मन के वशीभूत होकर क्षणिक सुख तो प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु वास्तविक सुख प्रभु राम की भक्ति से ही प्राप्त होता है। भक्ति से प्राप्त सुख इतना मधुर होता है कि इसके आगे सभी नौरस फीके पड़ जाते हैं।

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