सीहोर। जीवन में सुख-दुख का आना-जाना बना रहता है। हमें सुख मिलेंगे या या दुख, ये हमारे कर्मों पर ही निर्भर करता है। जाने-अनजाने में किए गए गलत कामों का फल देर ही सही लेकिन दुखों के रूप में जरूर मिलता है। इसलिए ऐसे कामों से बचना चाहिए जो धर्म के अनुसार सही नहीं हैं। इन दिनों गुप्त नवरात्रि के साथ हमारे केन्द्र में 15 दिवसीय शिव-शक्ति दिव्य अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। जिससे हम अपने आप में ध्यान और भगवान शिव-माता के नाम का स्मरण करते हुए कार्य करना है। जिससे हमारे जीवन में सात्विकता आऐगी। उक्त विचार शहर के सैकड़ाखेड़ी स्थित संकल्प वृद्धाश्रम परिवार के तत्वाधान में जारी 15 दिवसीय शिव-शक्ति दिव्य अनुष्इान के पांचवे दिवस पंडित सुनील पाराशर ने कहे।
इस मौके पर श्रद्धा भक्ति सेवा समिति की ओर से केन्द्र के संचालक राहुल सिंह ने कहाकि हमें ऐसे लोगों की संगत से बचना चाहिए जो हमें गलत काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे लोग कभी दुखी नहीं होते हैं जो सज्जनों की संगत में रहते हैं। जो लोग संत-महात्मा के साथ रहते हैं, उनके प्रवचन सुनते हैं और उनकी सीख को जीवन में उतारते हैं, वे कभी निराश नहीं होते हैं। जो व्यक्ति लालची, अहंकारी और क्रोधी नहीं है, उनके साथ रहेंगे तो विचारों में सकारात्मकता बनी रहेगी। जिन्हें अपनाने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जीवन पर हमारी संगत का सीधा असर होता है, इसलिए अपनी के संबंध में बहुत सतर्क रहना चाहिए।

मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता
जिला संस्कार मंच के संयोजक मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि गुप्त नवरात्रि का सोमवार को पांचवा दिवस है। मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है। भगवान स्कंद जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है। मां का वर्ण पूर्णत शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है। इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है। यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके मां की स्तुति करने से दु:खों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।