‘डॉक्टरों पर हर हमले की निगरानी नहीं कर सकते’, सुप्रीम कोर्ट का याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों पर हमलों से बचाव के लिए नए दिशानिर्देश बनाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार किया और कहा कि हर मामले की निगरानी करना कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने बताया कि पहले ही इस विषय पर दिशानिर्देश दिए जा चुके हैं और अगर उनका पालन नहीं हो रहा है, तो याचिकाकर्ता अन्य कानूनी रास्ता अपनाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को डॉक्टरों पर बढ़ते हमलों से रक्षा के लिए दिशानिर्देश बनाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हर चीज की निगरानी करना कोर्ट का काम नहीं है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया और कहा कि ऐसे मामलों से संबंधित दिशानिर्देश पहले ही बनाए जा चुके हैं और याचिकाकर्ता अगर चाहें तो उचित कानूनी प्रक्रिया अपना सकते हैं। एक याचिका में राजस्थान के दौसा में एक महिला डॉक्टर (गाइनोकॉलजिस्ट) की आत्महत्या की घटना की सीबीआई जांच की मांग की गई थी। महिला डॉक्टर ने उस समय आत्महत्या कर ली थी, जब डिलीवरी के दौरान ज्यादा खून बहने से एक मरीज की मौत हो गई और उसके बाद उन्हें  भीड़ ने परेशान किया।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से बुधवार को पेश एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्टूबर 2022 के आदेश का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। एक वकील ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चाहे कोई फैसला भी दिया हो, लेकिन जमीनी हालात नहीं बदले।
इस पर बेंच ने पूछा, तो फिर दोबारा दिशानिर्देश बनाने से क्या फायदा? जब वकील ने कहा कि संसद ने भी इस मुद्दे पर विचार किया है, तो बेंच ने कहा,यह काम संसद का है।  जब वकील ने दलील दी कि पुलिस को डॉक्टरों पर हमलों के मामलों से निपटने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, तो कोर्ट ने कहा, ये सब नीति से जुड़े मामले हैं। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणनने कहा कि चिंता इस बात की है कि देशभर में कई थाने मरीज के उपचार के दौरान मौत होने पर डॉक्टरों के खिलाफ मामला दर्ज कर लेते हैं। इस पर बेंच ने पूछा, ऐसा आम आरोप सभी थानों पर कैसे लगाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपने पुराने फैसले में दिशानिर्देश जारी कर चुका है और अगर उनका पालन नहीं किया जाता तो वह अवमानना मानी जाएगी। कोर्ट ने कहा, ऐसे आम निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं? 

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