मनोकामना पूर्ण होने पर महिलाएं रखेंगी व्रत, पालस वृक्ष की पूजा कर करेंगी मंगलकामना
निपानिया कला में तीज का यह दो दिवसीय व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का माध्यम भी है। यह पर्व हमें पारिवारिक एकता, सामाजिक सद्भाव और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश देता है।
निपानिया कला (डीआर न्यूज इंडिया)
गांव निपानिया कला में मंगलवार से दो दिवसीय तीज महोत्सव की शुरुआत हो रही है। यह पर्व मुख्य रूप से विवाहित और अविवाहित महिलाओं द्वारा सौभाग्य, सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर महिलाएं उपवास रखकर पालस (खकर्) के वृक्ष की विधि-विधान से पूजा करेंगी और अपने परिवार की मंगलकामना करेंगी। परंपरा के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और जो महिलाएं संतान की इच्छा रखती हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
व्रत की शुरुआत – गांव में धार्मिक माहौल
तुलसी बाई,व्रन्दा बाई,भगवति बाई ने बताया कि सुबह से ही निपानिया कला के घर-आंगन में चहल-पहल देखने को मिली। महिलाएं तीज के पारंपरिक गीत गाते हुए एक-दूसरे के घर पहुंच रही हैं। बाजार में पूजन सामग्री, लाल-पीला चुनरी, नारियल, फल, और पालस के पत्ते खरीदने वालों की भीड़ देखी गई।
गांव की मुख्य चौपाल के पास सजाई गई पूजा स्थल को फूल-मालाओं और रंगोली से सजाया गया है। महिलाएं नए परिधान, विशेषकर हरी चूड़ियां, लाल साड़ी और माथे पर बड़ी बिंदी के साथ सज-धज कर पहुंच रही हैं।
पालस वृक्ष की पूजा का महत्व
पालस का वृक्ष, जिसे ‘धाक’ भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पालस में ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवताओं का वास होता है। तीज के व्रत में इस वृक्ष की पूजा करने से तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
महिलाएं वृक्ष की जड़ों में जल अर्पित करती हैं, तिलक लगाती हैं और फिर लाल-पीला धागा लपेटकर अपनी मनोकामना व्यक्त करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं पूरे दिन जल और फलाहार पर रहती हैं और शाम को तीज माता की कथा सुनती हैं।
धार्मिक कथा और परंपरा
गाव के हरिनारायन उपलावदिया ने जानकारी देते हुए बताया कि तीज के व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से संबंधित है। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। तीज का व्रत उसी तपस्या का प्रतीक है।
इस दिन महिलाएं तीज माता की कथा सुनकर पार्वती जी की तरह अपने जीवन में सुख और सौभाग्य की कामना करती हैं। कथा के दौरान महिलाएं एक-दूसरे को ‘सुग्गा-सुग्गी’ (हरित चिड़िया के प्रतीक) भेंट करती हैं, जो हरी-भरी जिंदगी का प्रतीक है।
दो दिनों तक चलेगा पर्व
निपानिया कला में यह तीज पर्व दो दिनों तक धूमधाम से मनाया जाएगा।
- पहला दिन: उपवास, पालस वृक्ष की पूजा और तीज माता की कथा।
- दूसरा दिन: सामूहिक भजन-कीर्तन, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
गांव के मंदिर में विशेष आरती और प्रसाद वितरण का आयोजन किया जाएगा।
महिलाओं की श्रद्धा और तैयारी
गांव की महिलाओं ने इस व्रत के लिए कई दिन पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। घरों में विशेष व्यंजन जैसे घेवर, पूड़ी, हलवा और मिठाई बनाई जा रही हैं। व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा की शुरुआत करती हैं।
गांव की बुजुर्ग महिलाएं नई पीढ़ी को व्रत की विधि और महत्व समझा रही हैं, ताकि यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों में भी जीवित रहे।
स्थानीय रंग-रूप
गांव के छोटे-छोटे बच्चे भी इस पर्व में उत्साह के साथ भाग ले रहे हैं। वे पारंपरिक खेल खेलते हुए और तीज के गीत गाते हुए नजर आते हैं। युवतियां समूह में सज-धज कर झूला झूलने जाती हैं, क्योंकि तीज और झूले का गहरा संबंध है। घरों और चौपाल में झूले सजाकर गीत-संगीत के बीच महिलाएं अपनी खुशी साझा करती हैं।
धार्मिक और सामाजिक एकता
तीज पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह गांव में सामाजिक एकता का भी अवसर बनता है। इस दौरान सभी लोग जाति-पंथ के भेदभाव से ऊपर उठकर एक साथ पूजा और उत्सव में भाग लेते हैं। बुजुर्गों के आशीर्वाद और बच्चों की मासूम हंसी इस पर्व को और भी खास बना देती है।
पालस वृक्ष और पर्यावरण संदेश
इस पर्व का एक महत्वपूर्ण पहलू पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा है। पालस वृक्ष की पूजा करने और उसे संरक्षित रखने की परंपरा हमें प्रकृति के महत्व की याद दिलाती है। इस मौके पर कुछ महिलाओं ने संकल्प लिया कि वे अपने घर के आसपास नए पालस वृक्ष लगाएंगी और उनकी देखभाल करेंगी।
अंतिम चरण – व्रत का समापन
दूसरे दिन शाम को व्रत रखने वाली महिलाएं सामूहिक पूजा कर, कथा सुनकर और आरती उतारकर अपना व्रत खोलेंगी। इसके बाद सभी प्रसाद का सेवन करेंगे और एक-दूसरे को बधाई देंगे। इस प्रकार निपानिया कला में तीज का यह पावन पर्व श्रद्धा, उत्साह और उमंग के साथ संपन्न होगा।