निपानिया कला में दो दिवसीय तीज महोत्सव धूमधाम से शुरू, महिलाओं ने व्रत रखकर मंगलगीतों पर जमकर थिरकीं

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निपानिया कला में दो दिवसीय तीज महोत्सव धूमधाम से शुरू, महिलाओं ने व्रत रखकर मंगलगीतों पर जमकर थिरकीं

निपानिया कला (डीआर न्यूज इंडिया)मध्यप्रदेश के निपानिया कला गांव में मंगलवार से पारंपरिक तीज महोत्सव की शुरुआत हुई। धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक यह पर्व न केवल महिलाओं के सौभाग्य और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव, पारिवारिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश भी देता है। दो दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में महिलाएं उपवास रखकर विधि-विधान से पूजन करती हैं और मंगलगीतों की धुन पर झूम उठती हैं।

तीज पर्व का संदेश

निपानिया कला में मनाया जाने वाला तीज पर्व यह संदेश देता है कि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराएं समाज को एकजुट करती हैं। यह पर्व हमें अपने रिश्तों की कद्र करना, परिवार की खुशहाली के लिए त्याग करना और प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

आज के समय में जब आधुनिकता और व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग परंपराओं से दूर हो रहे हैं, ऐसे आयोजनों का महत्व और भी बढ़ जाता है। तीज महोत्सव न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों को भी मजबूती से थामे रखने का माध्यम है।

तीज का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

तीज पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में हरियाली तीज, कजरी तीज या हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। निपानिया कला की सुमन बाई,सावत्रबाई,भगवती बाई,उर्मिला बाई,मनी बाई,गीता बाई,सीमा बाई ने बताया कि में मनाया जाने वाला यह पर्व मुख्य रूप से विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित युवतियां अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए इस दिन उपवास करती हैं।

परंपरा के अनुसार, इस व्रत के दौरान महिलाएं पालस (खकर) के वृक्ष की पूजा करती हैं, जो जीवन में स्थायित्व, समृद्धि और संतुलन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के पालन से दांपत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

गांव में तीज महोत्सव का आगा

मंगलवार की सुबह से ही निपानिया कला में त्योहार का माहौल दिखाई देने लगा। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सजी-धजी, हाथों में मेंहदी और रंग-बिरंगी चूड़ियों के साथ एकत्रित हुईं। व्रतधारी महिलाओं ने सूर्योदय से पहले ही स्नान कर व्रत की शुरुआत की और पालस के वृक्ष की पूजा हेतु सामग्री तैयार की।

पूजन के बाद महिलाओं ने पारंपरिक मंगलगीत गाए, जिनमें पति की लंबी उम्र, परिवार की खुशहाली और जीवन में समृद्धि की कामनाएं की गईं। गीतों की धुन और ढोलक की थाप पर महिलाएं झूमकर नाचने लगीं, जिससे माहौल में उल्लास और उत्सव का रंग भर गया।

शोभायात्रा का आयोजन

दोपहर में काला जी महाराज स्थान से तीज महोत्सव की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं। परंपरा के अनुसार, गांव की महिलाएं 9 तीज के प्रतीक स्वरूप कलश और सजाई गईं टोकरी (तीज) को सिर पर रखकर शोभायात्रा में शामिल होती हैं।

यह शोभायात्रा गांव के प्रमुख मार्गों से होते हुए हनुमान मंदिर तक पहुंची। रास्ते भर मंगलगीत, भजन और लोकधुनें गूंजती रहीं। ग्रामीण और बच्चे भी इस शोभायात्रा को देखने के लिए मार्ग किनारे खड़े रहे।

धार्मिक विधि-विधान

पूजा-अर्चना के दौरान महिलाएं पालस के वृक्ष की जड़ों में जल अर्पित करती हैं और तिलक लगाती हैं। वे भगवान शिव-पार्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप जलाकर कथा सुनती हैं। कथा में देवी पार्वती के तप, भक्ति और शिवजी से विवाह की कथा सुनाई जाती है, जो इस व्रत की मूल प्रेरणा है।

महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और केवल तीज की कथा एवं भजन-कीर्तन में लीन रहती हैं। गांव की बुजुर्ग महिलाएं युवा पीढ़ी को इस व्रत से जुड़ी परंपराएं और धार्मिक नियम बताती हैं, ताकि यह संस्कृति पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहे।

त्योहार में सामाजिक सहभागित

निपानिया कला में तीज महोत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मेल-जोल और एकता का अवसर भी है। इस अवसर पर शामिल हुई ममता बाई, सुनिता बाई,सोदरा बाई,पार्वती बाई, कुंती बाई ने बताया कि एक-दूसरे को मिठाइयां बांटते हैं और बच्चों के लिए झूले, खेल और मेहंदी लगाने की व्यवस्था की जाती है।

इस वर्ष भी गांव के युवाओं ने सजावटी पंडाल और शोभायात्रा के मार्ग को फूलों व रंग-बिरंगी झालरों से सजाया।

आज होगा समापन

दो दिवसीय इस महोत्सव का समापन बुधवार को होगा। परंपरा के अनुसार, व्रतधारी महिलाएं सुबह नदी या तालाब में स्नान करके व्रत का पूजन पूरा करेंगी। गांव के सन्दीप झलाबा ने बताया कि घर लौटकर फलाहार ग्रहण करेंगी और परिवार के साथ प्रसाद साझा करेंगी।

समापन के अवसर पर सामूहिक भजन-कीर्तन और हवन का आयोजन होगा, जिसमें गांव के सभी लोग शामिल होंगे। इसके साथ ही, तीज महोत्सव के धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण होंगे और सभी महिलाएं अगली बार के तीज पर्व तक इसकी स्मृतियों को संजोकर रखेंगी।

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