भोपाल / कैबिनेट के फैसले के दो माह बाद भी पचमढ़ी की 395.93 हेक्टेयर जमीन फॉरेस्ट से रेवेन्यू (नजूल) घोषित करने का आदेश जारी नहीं हो सका है। इसकी वजह डिनोटिफाई की जाने वाली जमीन के खसरा नंबर एंट्री किए जाने में हुई चूक को बताया जा रहा है। ऐसे में अब अगली कैबिनेट में एक बार फिर इस प्रस्ताव को लाए जाने की तैयारी है ताकि सही खसरे नंबर्स की एंट्री किए जाने के बाद उसे कैबिनेट बैठक में मंजूरी दी जा सके।वन विभाग के अधीन पचमढ़ी की इस भूमि को डिनोटिफाई करने के लिए मोहन यादव सरकार ने 5 मई की कैबिनेट बैठक में फैसला किया था। इसके बाद यह भी तय हुआ था कि पचमढ़ी अभयारण्य का नोटिफिकेशन फिर से होगा।

अभी अभ्यारण के कारण अनुमति नहीं दे पा रही सरकार
दरअसल, मोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद यह फैसला लिया था। एमपी सरकार ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 (1) के अंतर्गत एक जून 1977 को पचमढ़ी अभयारण्य को अधिसूचित किया था।
इस दौरान अभयारण्य में शामिल किए गए और बाहर किए जाने वाले क्षेत्र को सीमांकित नहीं किया गया था। इसके चलते यहां कोई गतिविधि सरकार खुद भी नहीं कर पा रही है।
इस मामले में सरकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद यहां की 395.93 हेक्टेयर जमीन को नजूल भूमि घोषित करने का फैसला किया गया।
इसके बाद यह भूमि विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के स्वामित्व में आ जाएगी और यहां विकास कार्यों में तेजी लाने व जमीन की खरीदी-बिक्री का काम किया जा सकेगा। अभी अभयारण्य होने के कारण यहां कोई व्यवसायिक गतिविधियां चलाने की अनुमति सरकार नहीं दे पा रही है।

फैसले के बाद यह पेंच सामने आया
बताया जाता है कि कैबिनेट बैठक के बाद वन विभाग की ओर से इसका नोटिफिकेशन जारी होना था लेकिन कैबिनेट के फैसले के बाद यह बात सामने आई कि डिनोटिफाई किए जाने वाले खसरों और रकबे के नंबर एंट्री करने में गड़बड़ हो गई है।
इसके चलते नोटिफिकेशन की कार्यवाही रोक दी गई। अब जबकि नर्मदापुरम कलेक्टर ने इसे करेक्ट करा दिया है तो कहा जा रहा है कि अब इसे फिर कैबिनेट में लाकर मंजूरी दी जाएगी। इसके बाद इसका राजपत्र में प्रकाशन होगा।