भोपाल, 31 अक्टूबर 2025 — कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के उस बयान ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी जिसमें उन्होंने कहा कि यदि समय और परिस्थिति बनीं तो विधायक आरिफ मसूद को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। भाजपा ने इसे विपक्षी दल की राजनीतिक आकांक्षा करार दिया और सीधे हमला बोला।
विशेषज्ञों की राय
- कुछ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि ऐसे संकेत गठबंधन राजनीति और जाति-धर्म समीकरण के अनुरूप उठाए जाते हैं।
- अन्यों का मानना है कि चुनावी रणनीति के तहत ऐसे बयान दिए जा रहे हैं ताकि समुदायों को साथ लाया जा सके।
प्रमुख बातें
- जीतू पटवारी ने “जश्न—ए—तहरीके आज़ादी: याद करो उलमा की कुर्बानी” कार्यक्रम में आरिफ मसूद के उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना का संकेत दिया।
- मंच पर मौजूद नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की उपस्थिति में यह टिप्पणी हुई; आरिफ मसूद मंच पर हाथ जोड़कर मुस्कुराते दिखे।
- भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए इसे “शेखचिल्ली के हसीन सपने” बताया और पटवारी का मज़ाक उड़ाया।
कार्यक्रम का हाल — मंच से आया बयान
भोपाल में आयोजित उस सार्वजनिक कार्यक्रम के मंच से जीतू पटवारी ने कहा, “समय और परिस्थिति बनीं तो आरिफ मसूद उपमुख्यमंत्री बन सकते हैं।” मंच पर जब यह बात आई तो आरिफ मसूद ने हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए दर्शकों की प्रतिक्रियाओं का स्वागत किया। उपस्थित लोग तालियों से इस घोषणा पर उत्साह दिखाते रहे।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी कार्यक्रम में मौजूद थे, जिससे इस बयान को पार्टी की अंदरूनी सहमति का संकेत भी माना जा रहा है। पटवारी के इस बयान ने विपक्षी और सत्ताधारी दलों के बीच नई बहस छेड़ दी है।
BJP का जवाब — तीखा और व्यंग्यपूर्ण

भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने कांग्रेस के बयान पर पलटवार करते हुए कहा — “झूठ बोले कौवा काटे। 40–50 विधायक ढंग के नहीं हैं और अगले चुनाव तक उनकी क्या स्थिति रहेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। एक-दो मुसलमान हैं, उनको उपमुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री बना दो — जनता तुम्हें बनने देगी तब न।”
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस “शेखचिल्ली के हसीन सपने” देख रही है और जीतू पटवारी के साथ जो कुछ हुआ, वैसा ही हाल आरिफ मसूद का भी हो सकता है। रामेश्वर शर्मा की यह टिप्पणी राजनीतिक रंजिश और तीखी भाषा का उदाहरण मानी जा रही है।
सियासी मायने और अगले कदम
यह बयान मध्यप्रदेश की सियासी तस्वीर में नई बहस जोड़ता है। विधानसभा चुनावों के नज़दीक आते ही उपमुख्यमंत्री पद को लेकर नामों की अटकलें और दावों का बाजार गरम होता जा रहा है — खासकर जब राष्ट्रीय और क्षेत्रीय गठबंधनों में सत्ता भागीदारी तय करने की संभावनाएं उभरती हैं।
विश्लेषक इसे कांग्रेस की सांविधानिक और सामाजिक समावेशिता का प्रतीक स्वरूप भी पढ़ रहे हैं, जबकि भाजपा इसे चुनावी हवा बनाने और विपक्ष का मनोबल बढ़ाने का प्रयास बता रही है।




