प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में आज किया जाएगा घृताधिवास और नित्य पूजन हवन

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सीहोर। शिव महापुराण में, ऋषि वेदव्यास ने भगवान शिव के स्वरूप को बताया है, जिसमें उनके कल्याणकारी स्वरूप, विभिन्न रूप, अवतार और ज्योतिर्लिंग शामिल हैं। शिव महापुराण एक दिव्य ग्रंथ है जो मानव जाति को सुख और आनंद प्रदान करता है। शिव-विवाह को जीवात्मा का परमात्मा, कामना का भावना और नदियों का सागर से मिलन है। उक्त विचार शहर के प्राचीन श्री हंसदास मठ, दशहरा बाग उमा शंकर धाम कालोनी के पास जारी सात दिवसीय संगीतमय श्री शिव महापुराण के तीसरे दिन कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय ने कहे। श्री हंसदास मठ में स्फटिक श्री रिद्धेश्वर महादेव प्राण-प्रतिष्ठा सिद्ध श्री हनुमान महाराज की स्थापना का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव का आयोजन महंत श्री हरिरामदास महाराज के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। शिव महापुराण के अलावा शुक्रवार को  ब्राह्मण बटुकों का वैदिक शास्त्रानुसार उपनयन संस्कार के अलावा प्रतिमाओं का पुष्पाधिवास, फलाधिवास, र्शकराधिवास और अग्रि स्थापना का आयोजन किया। महंत श्री ने बताया कि शनिवार को प्रतिमाओं घृताधिवास,  मिष्ठानाधिवास, पत्राधिवास और नित्य पूजन हवन किया जाएगा। 
पंडित श्री उपाध्याय ने कहाकि मन अगर पवित्र तो शिव आपके हृदय में विराजमान हो जायेंगे इसलिए शिव की भक्ति के लिए मन की पवित्रता प्रथम आवश्यकता है। मन की पवित्रता अच्छी संगत से आती है इसलिए संतो की संगत को श्रेष्ठ माना गया है। सब देवताओं की शक्ति जब एकाकार हुई तब शक्ति स्वरूपा दुर्गा का आविर्भाव हुआ भारतीय संस्कृति में महिलाओं को शक्ति स्वरूपा दुर्गा रूप में स्वीकार किया गया है वही धन ऐश्वर्य की प्राप्ति भी लक्ष्मी विद्या की प्राप्ति सरस्वती से होती है ये सब नारी का स्वरूप है परंतु पाश्चात संस्कृति के प्रभाव में नारी के सम्मान और चरित्र की हानि हुई है, अब हम सभी की जिम्मेदारी है कि राष्ट्र में भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना की आवश्यकता है।
शुक्रवार को पंडित श्री उपाध्याय ने भगवान शिव और सती की कथा का विस्तार से वर्णन किया। शिव एवं सती के विवाह के बारे में बताया की भगवान शिव के विवाह के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। भगवान शिव का यह विवाह बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था। सती के पिता दक्ष भगवान शिव से अपने पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह विवाह सम्पन्न हो गया। एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया जिससे नाराज होकर माता सती ने यज्ञ में समाहित हो गई। इसके बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। उधर माता सती ने हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। तारकासुर नाम के एक असुर का उस समय आतंक था। देवतागण उससे भयभीत थे। तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ भगवान शिव की संतान ही कर सकती है। उस समय भी भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे। तब सभी देवताओं ने मिलकर शिव और पार्वती के विवाह की योजना बनाई। भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया लेकिन वह भस्म हो गए। देवताओं की विनती पर शिव जी पार्वती जी से विवाह करने के लिए राजी हुए। विवाह की बात तय होने के बाद भगवान शिव की बारात की तैयार हुई। इस बारात में देवता, दानव सभी लोग शामिल हुए। भगवान शिव की बारात में भूत पिशाच भी पहुंचे और ऐसी बारात को देखकर पार्वती जी की मां बहुत डर गईं और कहा कि वे ऐसे वर को अपनी पुत्री को नहीं सौंप सकती हैं। तब देवताओं ने भगवान शिव को परंपरा के अनुसार तैयार किया, सुंदर तरीके से श्रृंगार किया इसके बाद दोनों का विवाह संपन्न हो गया। 

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