भोपाल / बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में आयोजित अध्ययन समूह की मासिक श्रृंखला में छात्रों और शिक्षकों ने अरुण कुमार द्वारा लिखित पुस्तक ‘स्व से साक्षात्कार’ पर विचार साझा किए। चर्चा का केंद्र बिंदु रहा – स्वाधीनता और स्वतंत्रता का अंतर तथा ‘स्व’ की असली पहचान।
11वीं मासिक बैठक में हुआ पुस्तक वाचन
यह कार्यक्रम प्रज्ञा प्रवाह अंतर्गत संचालित अध्ययन समूह की 11वीं मासिक बैठक थी। इस अवसर पर पुस्तक के अध्याय ‘स्वत्व के लिए संघर्ष’ का वाचन किया गया। वक्ताओं ने कहा कि जब हम “इंडिया” कहते हैं तो अपनत्व की भावना कमजोर पड़ती है, लेकिन “भारत” कहने पर आत्मीयता और संस्कृति का जुड़ाव गहरा महसूस होता है। यही ‘स्व’ की पहचान है।
क्रांतिकारियों का संघर्ष ‘स्व’ के लिए
परिचर्चा में यह बात सामने आई कि स्वतंत्रता और स्वाधीनता में मूलभूत अंतर है।
- स्वतंत्रता: केवल बंधनों से मुक्ति।
- स्वाधीनता: अपने मूल्यों, आत्मा और संस्कृति के अनुरूप जीवन जीना।
वक्ताओं ने कहा कि यही सोच भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव बनी। आंदोलन को प्रेरणा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज से मिली और खासतौर पर बंगाल के क्रांतिकारियों ने इस ‘स्व’ के लिए बड़ा योगदान दिया।
अमृतकाल और आज का युवा
चर्चा में अमृतकाल को आत्म चेतना और राष्ट्रीय पुनर्जागरण का समय बताया गया। इसे उस सुबह की घड़ी से जोड़ा गया, जब अंधेरा समाप्त हो चुका होता है, लेकिन पूरी तरह उजाला भी नहीं हुआ होता। यह प्रतीकात्मकता आज के भारत के लिए बेहद प्रासंगिक मानी गई।
वक्ताओं का कहना था कि आज का भारतीय युवा हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। जरूरत सिर्फ सही दिशा और मार्गदर्शन की है।
कार्यक्रम में रहे मौजूद
इस अवसर पर राजनीति विज्ञान, समाज कार्य और समाजशास्त्र विभाग के शिक्षक –
प्रो. कुमारेश कश्यप, डॉ. सविता सिंह भदौरिया, डॉ. अंजुम आरा, किरण बिलौनिया, डॉ. रौफ, डॉ. कायनात तरन्नुम और डॉ. राधा मिश्रा उपस्थित रहे