लोकसेवा पदोन्नति नियम 2025 का विरोध, कोर्ट जाने की तैयाारी

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डॉ. मोहन यादव की कैबिनेट बैठक में नए प्रमोशन फॉर्मूले को मंजूरी मिल गई।

भोपाल / 9 साल से अटकी पदोन्नति (प्रमोशन) को लेकर मध्यप्रदेश सरकार से अधिकारी-कर्मचारी संगठन नाराज हैं। संगठनों ने संकेत दिए हैं कि वे सरकार के इस फैसले के विरोध में कोर्ट जा सकते हैं। सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (स्पीक) ने सरकार के फैसले को सामान्य वर्ग विरोधी बताया है।

उन्होंने पदोन्नति नियमों को नई पैकिंग में पुरानी दवाई कहा है। वहीं, तृतीय वर्ग कर्मचारी संगठन ने फैसले पर असंतोष जताते हुए कहा है कि सरकार ने वही किया जो 2016 से पहले चल रहा था। हालांकि, आरक्षित वर्ग के संगठन अजाक्स ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि, इस व्यवस्था के चालू होने से सभी वर्गों को पदोन्नति का मौका मिलेगा।

मंत्रालय अधिकारी संघ ने कहा- नई पैकिंग में पुरानी दवा

मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक ने कहा कि नए नियमों में कुछ भी नया नहीं है। यह बस पुराने नियमों को नए तरीके से पेश किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुरानी दवाई नई पैकिंग में कर दी गई है।

उन्होंने बताया कि विवाद की मुख्य वजह यह थी कि आरक्षित वर्ग के लोग अनारक्षित पदों पर भी पदोन्नत हो रहे थे, जिससे उच्च पदों पर लगभग 100% पद आरक्षित वर्ग के पास पहुंच गए थे।

उदाहरण के तौर पर मंत्रालय में अपर सचिव के 65 पदों में से 58 पद आरक्षित वर्ग के लोगों के पास हैं। नायक का कहना है कि नए नियमों में पुरानी समस्या को जस का तस रखा गया है, जिससे फिर से कोर्ट केस होने की संभावना है।

“2016 से पदोन्नति क्यों नहीं दी गई?”

सरकार अगर चाहती तो 2016 से काल्पनिक पदोन्नति देकर नुकसान की भरपाई कर सकती थी।

नायक ने यह भी सवाल उठाया कि जब न कोर्ट और न ही सामान्य प्रशासन विभाग ने पदोन्नति पर रोक लगाई थी, तो फिर कर्मचारियों को नौ साल तक प्रमोशन से क्यों वंचित रखा गया?

उनका कहना है कि करीब डेढ़ लाख कर्मचारी बिना पदोन्नति के रिटायर हो गए और एक लाख कर्मचारी ऐसे हैं जो दो प्रमोशन के हकदार थे।

विधि विभाग को प्रमोशन, बाकी को क्यों नहीं?

नायक ने कहा कि विधि विभाग ने 2016 से पदोन्नति दी और वर्टिकल आरक्षण लागू किया, जबकि बाकी विभागों में ऐसा नहीं किया गया। यह स्पष्ट भेदभाव है।

उन्होंने सुझाव दिया कि अगर विवाद से बचना है तो समयमान वेतनमान के साथ उच्च पदनाम देने की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, जैसा कि अन्य विभागों में हो रहा है।

तीसरे वर्ग के संगठन ने भी जताया असंतोष

तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के महामंत्री उमाशंकर तिवारी ने कहा कि सरकार ने जो नए नियम बनाए हैं, उनसे कुछ फायदे हैं लेकिन आरक्षण की पुरानी व्यवस्था को फिर लागू किया गया है, जो पहले विवाद का कारण बनी थी।

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति को 20 और अनुसूचित जाति को 16% आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। पदोन्नति नियम 2002 के पदोन्नति में आरक्षण के इसी नियम के विरोध में मामला उच्च न्यायालय में गया था।

यह मामला उच्च न्यायालय में जाने के बाद उच्च न्यायालय के पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी। 2016 से उच्चतम न्यायालय में मामला विचाराधीन है, अभी कोई फैसला नहीं आया है।

इस कारण पिछले 9 साल में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य जाति के एक लाख से अधिक अधिकारी कर्मचारी सेवानिवृत्ति हो चुके हैं और फिर वही नियम लागू कर दिए जाएं तो कहीं न कहीं कर्मचारियों में असंतोष व्याप्त है।

नए पदोन्नति नियम में भी सरकार द्वारा 36% पद आरक्षित रखे जाएंगे जो कि 2002 के नियम जैसा ही है, जिसको लेकर की विवाद था। पदोन्नति में आरक्षण न रखते हुए नौकरी में आते समय ही आरक्षण का लाभ दिया जाए ताकि सभी को सेवा में आने के बाद उसके कार्य एवं उसकी वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नतियां मिलें।

अजाक्स ने कहा- फैसला स्वागत योग्य

अजाक्स (SC/ST अधिकारी कर्मचारी संगठन) के अध्यक्ष मुकेश मौर्य ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि नौ साल से पदोन्नति रुकी हुई थी, जिससे सभी वर्गों को नुकसान हो रहा था। अब सभी को अवसर मिलेगा।

उन्होंने कहा कि फैसले में सभी वर्गों का ध्यान रखा गया है और संगठन की ओर से सीएम का अभिनंदन किया जाएगा।

स्पीक अध्यक्ष डॉ केएस तोमर ने पूछे पांच सवाल

सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था के अध्यक्ष डॉ केएस तोमर ने मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल को गुमराह कर रहे सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों से ये पांच सवाल पूछे हैं।

क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखने के कई फैसले आ चुके हैं। हरियाणा हाईकोर्ट ने ऐसे ही नियम को खारिज किया था। तो फिर मध्यप्रदेश में उन्हीं नियमों को क्यों दोहराया जा रहा है?

अगर सरकार ने पदोन्नति पर रोक नहीं लगाई थी (जैसा कि RTI में बताया गया), तो फिर 2016 से अब तक प्रमोशन क्यों नहीं हुई? इस नुकसान का जिम्मेदार कौन है?

जब कोर्ट ने गलत प्रमोशन पाए आरक्षित वर्ग के लोगों को रिवर्ट (पद से हटाने) का आदेश दिया, और सरकार मानती है कि आदेश पर यथास्थिति है, तो फिर उन्हीं लोगों को कैसे दोबारा प्रमोट किया जा सकता है?

आपने पहले गलती की, फिर 9 साल तक प्रमोशन रोके रखे, और अब फिर वही नियम लागू कर रहे हैं। यह कौन से संविधान में लिखा है?

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में कहा गया है कि आरक्षण का हद से ज़्यादा उपयोग रिवर्स भेदभाव पैदा करता है। फिर आरक्षित वर्ग के अधिकारियों को अनारक्षित कोटे से प्रमोट करना कैसे सही है?

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