सीहोर। सनातन धर्म के उत्थान में आदिगुरु शंकराचार्य जी का महत्वपूर्ण स्थान है। केरल राज्य के कालड़ी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में आदि गुरु शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था। अल्पायु सर्वज्ञ पुत्र या दीर्घायु सामान्य पुत्र। शिवगुरु ने अल्पायु सर्वज्ञ पुत्र का वर मांगा। इसके बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदिगुरु शंकराचार्य जी का जन्म हुआ। सनातन धर्म को पहचान देने वाले जगदगुरु शंकराचार्य हम सभी की आस्था का केन्द्र है। उक्त विचार शहर के सैकड़ाखेड़ी स्थित संकल्प नशा मुक्ति केन्द्र में उनके जन्मोत्सव जयंती के अवसर पर मुख्य अतिथि केन्द्र के प्रभारी नटवर कुशवाहा ने कहे।
हर साल की तरह इस साल भी शुक्रवार को श्रद्धा भक्ति सेवा समिति के तत्वाधान में शहर के संकल्प नशा मुक्ति केन्द्र में जगद्गुरु शंकराचार्य का जन्मोत्सव आस्था और उत्साह के साथ मनाया गया था। वक्ताओं ने कहकि आदिशंकराचार्य ने अपनी विद्वता, त्याग व समर्पण से सनातन धर्म का वैभव पूरी दुनिया में फैलाया था। आज आदि शंकराचार्य की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि उनकी नीतियों को आगे बढ़ाएं और सनातन धर्म का वैभव पूरी दुनिया में फैलाएं।
इस मौके पर शिव प्रदोष सेवा समिति के पंडित कुणाल व्यास, जिला संस्कार मंच के धर्मेन्द्र माहेश्वरी ने कहा कि शंकराचार्य ने अवतरित होकर सनातन धर्म की रक्षा की, भारत की एकता अखंडता के लिए देश के चारों कोनों में चार प्रधान मठ स्थापित किए और समग्र देश में नवयुग स्थापित कर दिया। अद्वैतवाद के प्रवर्तक आद्य शंकराचार्य का ब्रह्म सूत्र पर भाष्य एवं उपलब्ध 272 ग्रंथ एवं स्त्रोत उनके अलौकिक व्यक्तित्व, गंभीर विचार शैली, प्रचंड कर्मशीलता, अगाध भगवद्भक्ति, सर्वोत्तम त्याग, अद्भुत योगैश्वर्य आदि अनेक गुणों पर प्रकाश डालते हैं। यही कारण है कि अल्प आयु में ही उनको भारत के आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र में जगद्गुरू की उपाधि प्रदान की गई। सारे देश का विस्तृत भ्रमण करने के साथ-साथ आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत के सारे प्रांतों की विभिन्न प्रतिस्थितियों का भी गहन अध्ययन किया। आज उनकी जयंती पर हमारे द्वारा उनको याद किया जा रहा है और उनके विचार को लेकर गोष्ठी की जा रही है। इस मौके पर पंडित सुनील पाराशर ने यहां पर निवासरत वृद्धजनों के लिए संगीतमय भजनों की प्रस्तुति दी।