श्रीराम कथा के अंतिम दिवस-राम-शबरी प्रसंग सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

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सीहोर / शहर के रुकमणी गार्डन में चित्रांश समाज और अखिल भारतीय कायस्थ महासभा सीहोर के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय श्रीराम कथा के अंतिम दिवस संत उद्ववदास महाराज ने शबरी प्रसंग, भगवान राम और भरत के मिलाप के अलावा भगवान श्रीराम के राज्य अभिषेक का विस्तार से वर्णन किया। अंतिम दिवस बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने आरती की। इस संबंध में जानकारी देते हुए महासभा के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुमार सक्सेना और शैलेन्द्र श्रीवास्वत ने कहाकि सात दिवसीय श्रीराम कथा के समापन पर महा आरती और महाप्रसादी का वितरण किया गया।
उन्होंने कहा कि श्रीरामचरित मानस में वर्णन आता है कि विशुद्घ प्रभु प्रेम की भक्तिनी शबरी ने प्रभु राम के आगमन की उस समय तक श्रद्धाभाव से प्रतीक्षा की जब तक प्रभु श्रीराम ने भीलनी के झूठे बेरों को पूूर्ण आनंद के साथ नहीं चखा। जबकि शबरी को ऋषि मातंग ने बता दिया था कि अभी प्रभु मानव लीला करने के लिए जन्म लेंगे, बाललीलाओं, शिक्षा दीक्षा, विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा, मां जानकी के साथ विवाह के बाद 14 वर्ष के वनवास के समय प्रभु श्री राम तुम्हारे पास पधारेंगे। प्रभु के सच्चे भक्त कुछ पल या वर्ष ही नहीं कई-कई जन्मों तक प्रभु मिलन की प्रतीक्षा करने की सच्ची लगन रखते हैं। यही भारतीय संस्कृति की सुंदरता है।
तुलसीदास की रामचरितमानस में नाम महिमा को विशेष रुप से दर्शाया
संत उद्ववदास महाराज ने कहाकि तुलसीदास की रामचरितमानस में नाम महिमा को विशेष रुप से दर्शाया गया है। भगवान राम कहते हैं कि इस शक्ति से अनभिज्ञ हूं। रामचरितमानस नाम मात्र सुनने से ही संपूर्ण रामचरितमानस सुनने का फल मिल जाता है। व्यक्ति को जीवन में संदेह नहीं करना चाहिए क्योंकि संदेह व्यक्ति के जीवन का पतन करता है और विश्वास व्यक्ति के जीवन में प्रगति करता है। श्री राम कथा श्रद्धा और विश्वास की कथा है। इसके सुनने से व्यक्ति का कल्याण होता है जिसके लिए प्रबुद्ध समाज को समय निकालना चाहिए। रामचरितमानस में तुलसीदास महाराज ने भगवान श्री राम की मर्यादाओं का व्याख्यान किया है कि समाज में इस प्रकार की मर्यादाओं को अपनाने से अनेक प्रकार की बुराइयों का खात्मा होता है।  अहंकारी मनुष्य का पतन हो जाता है और ऐसा पुरुष समाज में सम्मान भी नहीं पाता। प्रभु का स्मरण करने तथा सत्संग में भाग लेने से अहंकार का नाश होता है। प्रभु का ध्यान करने से मनुष्य पापों से दूर रहता है और उसका इस लोक के साथ ही परलोक भी सुधर जाता है। हनुमान जी अपनी विन्रमता के कारण ही भगवान श्रीराम के आंखों के तारे रहे। उनकी विन्रमता और स्वामी भक्ति के कारण वहां भक्तों के शिरोमणि कहलाए। हनुमान जी समुद्र मार्ग से लंका को प्रस्थान कर जाते हैं। मार्ग में कई बाधाएं उत्पन्न होती है। पर सभी को दूर करते हुए वहां विभीषण से मुलाकात होती है। जो माता सीता का तत्कालीन पता बताते हैं। तब हनुमान जी अशोक वन पहुंच कर श्रीराम द्वारा दी हुई मुद्रिका माता सीता को देते हैं। माता को समझाकर फल खाने के बहाने अशोक वाटिका का विध्वंस कर देते हैं। यह सुन रावण कई योद्धाओं को भेजता है। लेकिन, उनके मारे जाने पर मेघनाथ को भेजता है। जो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान को पकड़ लेता है और रावण की सभा में उपस्थित कराया जाता है। सभा में रावण कटु शब्द बोलते हुए उनके पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। प्रसंग के दरम्यान हनुमान जी विभीषण के आवासगृह को छोड़ते हुए रावण की सोने की लंका जला डालते हैं तथा समुद्र में अपनी पूंछ बुझाकर मैया सीता के पास पहुंचते हैं। जहां मैया से निशानी के तौर पर चूड़ामणि लेकर उन्हें सांत्वना देते हुए वापस रामा दल लौट आते हैं।

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