सीहोर। गुरू की कृपा से ही अनंतदृष्टि द्वारा अंतर्घट में ही ईश्वर की दिव्य अनुभूतियां होती हैं। भगवान शिव के माथे पर जागृत तृतीय नेत्र प्रेरित करता है कि हम भी एक पूर्ण गुरू की शरण प्राप्त कर अपना शिव-नेत्र जागृत कराएं। जैसे ही हमारा यह नेत्र खुलेगा, हम अपने भीतर समाई ब्रह्म-सत्ता का साक्षात्कार करेंगे। उक्त विचार शहर के प्राचीन श्री हंसदास मठ, दशहरा बाग उमा शंकर धाम कालोनी के पास जारी सात दिवसीय संगीतमय श्री शिव महापुराण के चौथे दिन कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय ने कहे। श्री हंसदास मठ में स्फटिक श्री रिद्धेश्वर महादेव प्राण-प्रतिष्ठा सिद्ध श्री हनुमान महाराज की स्थापना का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव का आयोजन महंत श्री हरिरामदास महाराज के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। शिव महापुराण के अलावा शनिवार को हरिरामदास महाराज के सानिध्य में प्रतिमाओं को घृताधिवास, मिष्ठानाधिवास, पत्राधिवास, नित्य पूजन हवन आदि का आयोजन किया गया। वहीं रविवार को महास्नान, गंधाधिवास, धूपाधिवास, इत्राधिवास, मूर्ति न्यास और श्री रामाचार्य सहस्त्रार्चन उत्सव आदि दिव्य अनुष्ठान प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत किया जाएगा। इसके अलावा छह मई को पूर्णाहुति और भंडारे का आयोजन किया जाएगा।
शनिवार को शिव महापुराण के चौथे दिवस कथा वाचक पंडित श्री उपाध्याय ने भगवान शिव-माता पार्वती के विवाह, कार्तिकेय जन्म, तारकासुर के अलावा भगवान गणेश के जन्म के बारे में विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहाकि पृथ्वी लोक पर तारकासुर का अत्याचार, पापाचार बढ़ गया। उसका विनाश कार्तिकेय ही कर सकता था इसलिए शिव पार्वती का विवाह आवश्यक था। शिव अगर विश्वास है तो पार्वती श्रद्धा और जब दोनों एक साथ है तो पुरुषार्थ रूपी कार्तिक का जन्म होता है। उन्होंने कार्तिक स्वामी के जन्म की कथा सुनाई एवं कहा कि ऋषि विश्वामित्र ने कार्तिकेय का नामकरण किया। कार्तिक स्वामी के नामकरण के बाद उन्होंने विश्वामित्र से कोई वरदान मांगने को कहा। ऋषि ने राम के दर्शन होने का वर मांगा तो कार्तिकेय ने तथास्तु कहा। उधर, अयोध्या में प्रभु राम का जन्म हो चुका था। ऋषि विश्वामित्र वहां से अयोध्या के लिए निकल पड़े एवं वहां से यज्ञ रक्षा के लिए राम-लखन को लेकर आए और तारका का वध किया। देवतागण पुन भगवान शिव के पास गए और तारकासुर के अत्याचार के बारे में कहा तब कार्तिक स्वामी को बुलाने नंदी को गंगातट वन में भेजा। वे लौटे एवं शिव-पार्वती की आज्ञा लेकर उन्होंने तारकासुर को ललकारा व युद्ध कर उसका वध कर उद्धार किया। उस स्थान पर शिव लिंग स्थापित किया गया, जो तारकेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। देवताओं ने कार्तिकेय को अपनी सेना का सेनापति बना दिया। इसी प्रकार कथा के दौरान गणपति जन्म के बारे में भी बताया गया।
