भुजरिया पर्व उत्साहपूर्वक मनाया गया, पारंपरिक धूमधाम से हुआ ज्वारों का विसर्जन

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लहंगी देखने उमड़ी भीड़

भुजरिया जुलूस में सबसे आगे पुरुषों की टोलियां ‘लहंगी’ खेलते हुए चल रही थीं। उनके हाथों में छोटे-छोटे डंडे थे और ढोल की थाप पर पारंपरिक गीत गाते हुए वे गोल घेरे में नृत्य करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इन लहंगी खेलों को देखने के लिए सड़क किनारे लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।


ज्वारों का जुलूस और नदी घाट पर पूजा

महिलाएं अपने सिर पर ज्वारे (अंकुरित अनाज) रखकर उल्लास और उमंग के साथ जुलूस में शामिल हुईं। जुलूस गांव की गलियों से होता हुआ नदी घाट पर पहुंचा, जहां सभी ने मिलकर पूजा-अर्चना की। इसके बाद परंपरा के अनुसार भुजरियाओं का जल में विसर्जन किया गया। विसर्जन से पहले ज्वारों का चल समारोह भी निकाला गया, जिसमें सबसे पहले भगवान के मंदिरों में ज्वारे चढ़ाए गए।


भेंट और आशीर्वाद का सिलसिला

मंदिर में भुजरिया चढ़ाने के बाद लोगों ने एक-दूसरे को भुजरिया भेंट किए। यह आदान-प्रदान शाम तक चलता रहा। छोटे-बड़े सभी ने मिलकर इस पर्व की खुशियां साझा कीं। बच्चों और युवाओं ने अपने बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, वहीं बड़ों ने उन्हें ज्वारे देकर मंगलकामनाएं दीं।


सामाजिक और धार्मिक एकता का प्रतीक

भुजरिया पर्व ने न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत किया, बल्कि सामाजिक एकता का भी संदेश दिया। पूरे दिन गांवों में गीत-संगीत, नृत्य और आपसी मेलजोल का माहौल बना रहा। बारिश के बीच भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ और पारंपरिक रस्मों के साथ यह पर्व संपन्न हुआ।


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