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रायसेन / से करीब 17 किमी दूर स्थित खंडेरा माता का मंदिर शारदीय नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं से गुलजार रहता है। लोकश्रुति के अनुसार यहाँ की प्रतिमा की प्रकटता और इसके बाद गांव से महामारी का अंत—ये घटनाएँ मंदिर को क्षेत्र का प्रमुख श्रद्धास्थल बनाती हैं। नवरात्रि के 9 दिनों में यहाँ लाखों की संख्या में दर्शनार्थी और मेला देखने को मिलता है।

मंदिर का इतिहास और लोककथा
मंदिर के पुजारी दिनेश दुबे बताते हैं कि यह स्थान बहुत प्राचीन है। कई साल पहले गाँव में महामारी फैली थी और लोग बड़ी संख्या में मरने लगे थे। तब एक संत गांव में आए और यज्ञ कर नारा दिया। कथानुसार यज्ञ के सातवें दिन छोले (छोला) के पेड़ के पास भूमि फटी और पाँच-मुखी माता की प्रतिमा प्रकट हुई। इसके बाद ही गांव में महामारी समाप्त हो गई और तब से लोग माता की पूजा अर्चना श्रद्धा से करने लगे।
यह कथा स्थानीय लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती है और मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएँ आज भी जीवित हैं। माता को स्थानीय भाषा में “छोले वाली मैया” के नाम से भी पुकारा जाता है।
नवरात्रि में मेले और श्रद्धालुओं की भीड़
- नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान मंदिर परिसर में रंग-बिरंगा मेला लगता है।
- भोपाल, इंदौर, रतलाम, विदिशा, सागर सहित आसपास के कई शहरों और कस्बों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
- लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं—विशेषतः वे दंपति जो संतान की चाह रखते हैं, उन्हें माता से विशेष आशीर्वाद की आशा रहती है।
मंदिर परिसर में स्थानीय व्यंजन, भंडारे और लोककलाओं की झलक भी मिलती है। मेले में धर्मिक रीतियों के साथ-साथ सामान्य सामाजिक मिलन‑जुलन का भी महत्त्व होता है।
होली पर अनोखी परंपरा
खंडेरा गांव की एक ख़ास परंपरा यह है कि होली की दूज पर किसी भी धारदार औज़ार का प्रयोग वर्जित रहता है। नियम के मुताबिक:
- धुलेंडी की रात 12 बजे से लेकर होली की दूज रात 9 बजे तक घरों में सब्जियाँ नहीं काटी जातीं।
- किसान उस अवधि में फसल नहीं काटते और घर के लोग पहले ही सब्जियाँ काटकर रख लेते हैं।
यह परंपरा मंदिर और गाँव में वर्षों से निभाई जा रही है और स्थानीय लोग इसकी बड़ी श्रद्धा के साथ पालना करते हैं।
पुजारी का संदेश
दिनेश दुबे कहते हैं: “माँ खंडेरा की कृपा से गाँव सुरक्षित रहा है। नवरात्रि के समय यहां आने वाले श्रद्धालुओं से मेरा अनुरोध है कि वे संयम और स्वच्छता का पालन करें, मंदिर व्यवस्था में सहयोग दें और भीड़-भाड़ के समय मंदिर प्रशासन के निर्देशों का पालन अवश्य करें।”
यात्रियों के लिए जानकारी
- किस तरह पहुँचे: रायसेन से सड़क मार्ग से लगभग 17 किलोमीटर। निजी वाहन और स्थानीय बस सेवाएँ सीमित रूप से उपलब्ध रहती हैं; नवरात्रि के दौरान विकलांगता और भीड़ को देखते हुए स्थानीय बस-ऑपरेटर अतिरिक्त सेवाएँ कर सकते हैं।
- रूकने का विकल्प: पास के कस्बों में सीमित गेस्टहाउस/ढाबे हैं; भोपाल से आकर रात्रि ठहरना सुविधाजनक होगा (भोपाल ≈ 1.5–2 घंटे)।
- सुरक्षा व स्वच्छता: मेले के समय पीने के पानी और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था रहती है—फिर भी अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ और पानी रखना बेहतर है।




