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गुना/भारत: शारदीय नवरात्रि का छठा दिन, जो मां कात्यायनी के लिए समर्पित है, बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। मां कात्यायनी दुर्गा के छठे स्वरूप हैं और उन्हें महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने महिषासुर राक्षस का वध कर धर्म की रक्षा की थी।
मां कात्यायनी का महत्व
मां कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन की तपस्या से हुआ। यह स्वरूप विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए पूजनीय है, ताकि उन्हें योग्य वर मिले और विवाह में आ रही अड़चनें दूर हों।
पूजा विधि
- समय: संध्या समय (गोधूलि बेला) शुभ माना जाता है।
- वस्त्र: हरे रंग के वस्त्र पहनें।
- भोग: मां को शहद अर्पित करें।
- मंत्र: ‘ॐ देवी कात्यायन्यै नमः’ का जाप करें।
- आरती: मां कात्यायनी की आरती करें।
व्रत कथा
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने पुत्री रूप में जन्म लिया। पृथ्वी पर महिषासुर राक्षस के अत्याचार को देखते हुए उन्होंने उसका वध किया और धर्म की रक्षा की।
इस दिन की पूजा से न केवल विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी मिलती है।




