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शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा और ब्रजभूमि (मथुरा एवं वृंदावन) में रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ महा-रास का दिव्य नृत्य किया था।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा का चाँद पूरे वर्ष में केवल एक दिन ही अपने सोलह कलाओं के साथ पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है। इस रात चंद्रमा की किरणों को अमृत तुल्य माना जाता है। इस दिन माँ लक्ष्मी और चंद्र देव की विशेष पूजा की जाती है। हिन्दू परिवार इस अवसर पर खीर (दूध और चावल से बनी मिठाई) तैयार कर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं। माना जाता है कि इस रात की चंद्र किरणों में अद्भुत सौंदर्य, स्वास्थ्य और शक्ति देने की क्षमता होती है।
शरद पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि
शरद पूर्णिमा पर माँ लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। व्रती प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पवित्रता के साथ व्रत रखते हैं। पूजा की मुख्य विधियाँ इस प्रकार हैं:
- ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदी, सरोवर या तालाब में स्नान करें। यदि नदी में स्नान संभव न हो तो गंगा जल छिड़कें।
- शुद्ध हृदय से व्रत रखने का संकल्प लें।
- माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र पर गंगा जल अर्पित करें और लाल वस्त्र पर स्थापित करें।
- माँ लक्ष्मी को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजाएँ।
- कमल और श्वेत पुष्प, दीपक, मिठाई और फल अर्पित करें।
- मन्त्र और कथा का पाठ करें।
- संध्या के समय, जब चंद्रमा आकाश में मध्य में हो, चाँद को श्वेत पुष्प, दीपक और विशेष खीर अर्पित करें।
- पूजा समापन पर चंद्रमा की आरती करें।
- खीर को चाँदनी में रखें और अगले दिन परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद के रूप में वितरित करें।
शरद पूर्णिमा का महत्व
- इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के और निकट आता है और अपनी दिव्य किरणों से भक्तों को आशीर्वाद देता है।
- संतानहीन दंपतियों को व्रत करने से संतान सुख प्राप्ति की संभावना मानी जाती है।
- अविवाहित कन्याओं के लिए व्रत करने से अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
- चंद्रमा की किरणें शारीरिक और मानसिक शक्ति बढ़ाती हैं।
- पुराणों के अनुसार, इस रात माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर अवतार लेती हैं और अपने भक्तों को धन, संपन्नता और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
शरद पूर्णिमा की कथाएँ

कथा 1: राजा धनंजय और माँ लक्ष्मी
एक समय की बात है, मगध देश में राजा धनंजय शासन करते थे। वहाँ अकाल और रोगों के कारण बड़ा संकट आया। उनके राज्य में आर्थिक तंगी और जनसामान्य की परेशानियाँ बढ़ गईं।
राजा के मुख्य पुजारी ने सुझाव दिया कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा कर व्रत किया जाए। राजा और रानी ने पूरे मन से व्रत रखा और रात भर जागरण किया। भगवान चंद्रमा ने अपने दिव्य प्रकाश से उनके राज्य को रोगमुक्त किया और माता लक्ष्मी ने उन्हें समृद्धि प्रदान की।
तब से लोगों ने यह व्रत और पूजा करना आरंभ किया, जिससे घर और देश दोनों में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती रही।
कथा 2: भगवान कृष्ण की रासलीला
ब्रजभूमि में इस रात का महत्व और भी खास है। कहा जाता है कि इस रात भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ भक्ति रास का अद्भुत नृत्य किया। गोपियाँ कृष्ण के बांसुरी की मधुर धुन पर जागकर जंगल में आईं और कृष्ण के साथ रास में सम्मिलित हुईं।

भगवान कृष्ण ने अपनी अनोखी कृपा से स्वयं को कई रूपों में प्रस्तुत किया, ताकि हर गोपी के साथ वह नृत्य कर सकें। यह रासलीला इतनी दिव्य थी कि यह रात ब्रह्मलोक की एक रात्रि के समान लंबी हो गई, जो हजारों मानव वर्षों के बराबर है।
तब से इस रात को भक्ति और प्रेम की रात के रूप में मनाया जाता है। भक्त इस रात जागरण कर, अपने प्रियजन और परिवार के साथ प्रेम और भक्ति में डूबते हैं।
शरद पूर्णिमा न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भारत के कृषि समाज का उपहार भी है। यह पर्व फसल कटाई का उत्सव और स्वास्थ्य, समृद्धि, प्रेम एवं भक्ति का प्रतीक है।
पूजा, व्रत, खीर बनाना और चाँद की किरणों में उसे रखना, सभी कार्य इस दिव्य दिन को और अधिक पावन बनाते हैं। पूरे भारत में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा, नवन्ना पूर्णिमा, कुमुदिनी पूर्णिमा आदि।
इस दिन की चाँदनी और रात्रि की रासलीला हमें यह सिखाती है कि भक्ति, समर्पण और प्रेम ही सच्ची शक्ति है।




