सीहोर / मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी भीषण गर्मी और संरक्षण की अनदेखी के चलते जल संकट से जूझ रही है। जलस्तर में भारी गिरावट से जलीय जीवों, मछुआरों और तटीय गांवों की आजीविका प्रभावित हो रही है। श्रद्धालु नदी को पैदल पार कर रहे हैं। विशेषज्ञों ने इसे गंभीर संकट बताया है।
भीषण गर्मी के बीच मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी भी जल संकट से जूझ रही है। अभी मई का महीना लगभग आधा ही बीता है। गर्मी खत्म होने में समय है, लेकिन नदी का जलस्तर इतना नीचे चला गया है कि इसका अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है। कभी विशाल जलराशि से भरी रहने वाली मां नर्मदा में अब टापू ही टापू उभर आए हैं, और लोग बीचों-बीच स्नान करते हुए नदी को आसानी से पग-पग पार कर रहे हैं।
यह अविश्वसनीय लग सकता है, लेकिन नर्मदा नदी में पानी इतना कम हो गया है कि श्रद्धालु अब इसे पैदल ही पार कर रहे हैं। नदी के बीच में मुश्किल से 6 से 10 फीट पानी ही बचा है। नीलकंठ, सीलकंठ, मंडी, सातदेव, टिगाली, छिदगांव कांछी, बाबरी, डिमावर और छीपानेर जैसे गांवों में यह नज़ारा आम हो गया है। नदी का पाट, जो कभी दूर-दूर तक फैला हुआ था, वह सिकुड़ गया है। श्रद्धालुओं को स्नान करने के लिए अब नदी के मध्य तक जाना पड़ रहा है।
उत्खनन एवं संरक्षण की अनदेखी है वजह
यह स्थिति न केवल नदी के परिस्थिति की तंत्र के लिए खतरनाक है, बल्कि इस पर निर्भर हजारों लोगों की अजीविका पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है। नर्मदा नदी के लगातार गिरते जल स्तर के कारण तटीय गांव के लोगों को भी जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों की मानें तो नर्मदा नदी में हो रहे लगातार उत्खनन एवं संरक्षण की अनदेखी के कारण साल दर साल नर्मदा के जलस्तर में तेजी के साथ कमी आती जा रही है। बरसात के दिनों में जल स्तर तेजी के साथ बढ़ता है लेकिन उतना ही कम हो जाता है। जलस्तर घटने के कारण आसपास लगे शहरों में भी जल संकट के हालात निर्मित हो गए हैं। भैरुंदा शहर की ही बात करें तो यहां पर रहने वाला जलस्तर 250 से 300 फीट गहराई तक पहुंच चुका है।
जलीय जीवों पर मंडराता खतरा
नर्मदा नदी में जलस्तर की इस भयावह कमी का सबसे बुरा असर यहां के जलीय जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है। मछलियां और अन्य जलीय प्राणी कम पानी और ऑक्सीजन की कमी के कारण अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह संकट मछुआरों के लिए भी एक बड़ा झटका है, जिनका धंधा नदी के स्वस्थ परिस्थिति की तंत्र पर ही टिका हुआ है। मछुआरों व नाविकों के लिए नर्मदा में पानी की कमी एक बड़ी मुसीबत बनकर आई है। उन्होंने बताया कि अब उन्हें छोटी नावों का सहारा लेना पड़ रहा है, जो अक्सर पानी कम होने और टापुओं के कारण बीच में ही फंस जाती है। नावों का सुचारू रूप से संचालन भी मुश्किल हो गया है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर सीधा असर पड़ रहा है। तट पर रहने वाले इन परिवारों की रोजी-रोटी का प्रमुख साधन मां नर्मदा में चलने वाली नाव है। गर्मी के दिनों में जलस्तर कम होने से बाहर से आने वाले श्रद्धालु भी अब इनका उपयोग कम कर रहे हैं।
नदी का जलस्तर गिरना चिंता का विषय
नर्मदा सेवा समिति नीलकंठ के गुरु दयाल यादव, राजेश लखेरा की मानें तो नर्मदा नदी में जलस्तर की यह स्थिति चिंताजनक गिरावट एक गंभीर संकट का संकेत है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया और उचित कदम नहीं उठाए गए, तो न केवल नर्मदा का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा, बल्कि इस पर आश्रित लाखों लोगों का जीवन भी प्रभावित होगा। यह समय है कि हम सब मिलकर इस जीवनदायिनी नदी को बचाने के लिए ठोस प्रयास करना होगा। नर्मदा सेवा समिति लगातार अपने प्रयास में जुटी हुई है।