“जांच पूरी, निलंबन जारी – गुलाब मुरझाया, कांटे अब भी कुर्सी पर!”

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सीहोर / सिराड़ी की सहकारी समिति में एकतरफा कार्रवाई! बाकियों को मिला ‘सरकारी वरदान’, गुलाब सिंह मीना बोले – “क्या मैं ही व्यवस्था का वॉचमैन हूं?”

सीहोर- बहुद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समिति, सिराड़ी में भ्रष्टाचार की बयार चली तो सबके कपड़े गीले हुए, मगर सूखने के लिए सिर्फ गुलाब सिंह मीना को ही धूप में डाला गया।
दिनांक 27 अक्टूबर 2023 को मीणा जी को “संदेह” के आधार पर बिना जांच पूरी हुए निलंबित कर दिया गया, और अब जब जांच पूरी तरह से हो चुकी है, तब भी गुलाब सिंह अब तक वहीं हैं — “प्रतीक्षा की बेंच” पर।

लेकिन चमत्कार देखिए
जिनके साथ उन्होंने पंक्ति में खड़े होकर काम किया, समान दस्तखत किए, समान कागजों पर काम किया, उन्हीं साथियों पर जैसे निलंबन का कोई नियम लागू ही नहीं होता!

उपस्थित हैं विशेष नाम जिन्होंने इस “वित्तीय महागाथा” में बराबरी की भूमिका निभाई:

  1. भारत सिंह – प्रबंधक
  2. लक्ष्मीनारायण – पर्यवेक्षक
  3. जगदीश शर्मा – समिति प्रबंधक
  4. रमेश मंडलोई – पर्यवेक्षक
  5. राम सिंह वर्मा – प्रबंधक

गुलाब सिंह मीणा का सवाल बेहद तार्किक है –
“अगर हम सबने मिलकर खिचड़ी पकाई थी, तो अकेला मैं ही क्यों जलाया गया? बाकी सब ताज पहनकर घूम रहे हैं। क्या मेरी थाली में सिर्फ सजा परोसी जाएगी?”

कलेक्टर को दिए आवेदन में मीना जी का सीधा आरोप:
“या तो बाकी दोषियों को भी तत्काल निलंबित किया जाए, या फिर मुझे भी सेवा में बहाल किया जाए। अन्यथा ये व्यवस्था ‘सामूहिक गुनाहों का एकल सज़ा’ का भयानक उदाहरण बन जाएगी।”

– लगता है कि बाकी सभी कर्मचारी ‘सरकारी छत्रछाया’ में ऐसे महफूज़ हैं जैसे बारिश में सरकारी फाइलें – भीगती ही नहीं।
– “लक्ष्मीनारायण” जी का नाम ही शायद ऐसा है कि अफसरशाही भी डरती है, कहीं साक्षात नारायण न हों!
– “जगदीश शर्मा” का मामला बड़ा चमत्कारी है, ऐसा लगता है जांच अधिकारी शायद उन्हें ‘जज’ समझकर छोड़ आए!
– “राम सिंह वर्मा” को शायद ‘राम’ नाम के भरोसे स्वर्गीय छूट मिलती रही!
– और “मंडलोई” जी, नाम ही मंडली वाला है, तो खुद को अलग कैसे किया जाए?

यह कैसा न्याय है जिसमें एक को टारगेट करके बाकी को “VIP आरोपी” बना दिया गया? क्या जांच रिपोर्ट के पन्ने भी पहचान देखकर पलटे जाते हैं?
या फिर “गुनाह बराबर, सज़ा विकल्प अनुसार” का नया सरकारी फॉर्मूला चल निकला है?

गुलाब सिंह की एक व्यथा-पंक्ति:
“मुझे निलंबन की बर्फ में जमाया गया है साहब… और बाकी लोग मलाई काट रहे हैं।”

जब जांच पूरी हो गई तो मीना जी की तरह अन्य दोषियों के निलंबन में देरी क्यों?

बाकियों पर कार्रवाई कब होगी?

या फिर ‘चुनिंदा कार्रवाई’ को ही जांच का नया नाम दे दिया गया है?

गुलाब सिंह मीणा सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, व्यवस्था की उस कमजोरी का प्रतीक हैं जो समान दोषियों में भी भेदभाव करती है। जब तक दोषी सभी हैं, सज़ा भी सभी को होनी चाहिए।
नहीं तो व्यवस्था के चेहरे पर यह सबसे बड़ा व्यंग्य होगा – जहां गुलाब को कांटे मिले और काँटे फूल बन गए।

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