Drnewsindia.com/सीहोर
सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में आस्था की प्रतीक माने जाने वाले करीब दो लाख से अधिक कांवड़ जमीन पर बिखरे मिल रहे हैं। स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया पर आई तस्वीरों में निर्माणाधीन मंदिर के पास कांवड़ों का विशाल ढेर दिख रहा है, जिससे वहाँ की पवित्रता और व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।- 50 रुपए में बिकीं थीं कांवड़ — श्रद्धालुओं ने 11 किलोमीटर की यात्रा की
रिपोर्ट के अनुसार 6 अगस्त को कांवड़ वहाँ 50 रुपये में उपलब्ध कराई जा रही थीं और कई श्रद्धालु कंधे पर कांवड़ रखकर लगभग 11 किलोमीटर का सफर कर के धाम तक पहुँचे। ये कांवड़ बड़ी संख्या में बाहर से लाई गई थीं और तेज भीड़ के बीच श्रद्धालु धाम पर पहुंचे। - भगदड़ और अव्यवस्था में कांवड़ छोड़ गए श्रद्धालु
कई श्रद्धालु कांवड़ के महत्व और उसके नियमों से अपरिचित थे; भीड़, भगदड़ और आयोजन में हुई अव्यवस्था के कारण कई लोग कांवड़ वहीं छोड़कर चले गए। इससे पवित्र सामग्री और पूजा-सामग्री कचरे में मिलकर पवित्रता का मर्म प्रभावित हुआ। - सफाईकर्मी निकाल रहे हैं प्लास्टिक के कलश — कबाड़ के लिए
धाम के सफाईकर्मी अब ढेर से प्लास्टिक के कलश अलग कर रहे हैं ताकि उन्हें कबाड़ के रूप में बेचा जा सके। प्लास्टिक कलशों का अलग होना साफ-सफाई की प्रक्रिया का हिस्सा है ताकि बाकी जैविक कचरे से उनका पृथक्करण किया जा सके। - लकड़ी अलग कर जलाई या बाहर फेंकी जा रही है
कांवड़ की लकड़ी को भी अलग किया जा रहा है — कई स्थानों पर उसे इकट्ठा करके जलाने या बाहर फेंकने की योजना बतायी जा रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि आयोजकों/सफाईकर्मियों का मकसद सामग्री को पुनःप्रयोज्य और गैर-पुनःप्रयोज्य हिस्सों में बाँटना है। - निर्माणाधीन शिव मंदिर के सामने बदबू फैल रही है
निर्माणाधीन शिव मंदिर के सामने कांवड़ों और फूलों के बड़े ढेर से सड़ांध और बदबू फैल रही है, जिससे आसपास के वातावरण पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और स्थानीय लोगों को परेशानी हो रही है। यह स्थिति साफ-सफाई और समय पर कचरा निस्तारण के अपर्याप्त इंतजामों की तरफ इशारा करती है। - प्रतिमा नहीं — शिला पर चढ़ाया जा रहा जल
विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी मनोज दीक्षित ने बताया है कि धाम में अभी मूर्ति (प्रतिमा) नहीं रखी गई है; यहाँ ल मंदिर का निर्माण चल रहा है। फिलहाल श्रद्धालु केदारनाथ से लाई गई शिला पर ही जल चढ़ा रहे हैं और भविष्य में प्राण-प्रतिष्ठा की योजना है। - शास्त्रों के अनुसार — कांवड़ रखने और विसर्जन के नियम
परम्परा और शास्त्रों के मुताबिक कांवड़ को जल चढ़ाने के बाद पवित्र स्वरूप मानकर समान रुप से रखना चाहिए; यात्रा के दौरान उसे जमीन पर नहीं रखना चाहिए और उसे किसी अपवित्र स्थान पर नहीं रखना चाहिए। अभिषेक के बाद बचा जल घर ले जाकर पूरे घर में छिड़कना शुभ माना जाता है और खाली कांवड़ को किसी पवित्र नदी (जैसे नर्मदा, गंगा, यमुना) में विसर्जित करने की परम्परा बताई जाती है — यह सब वही धार्मिक-आचरण है जिसकी स्थानीय पुरोहितों ने भी व्याख्या की है। - पौराणिक संदर्भ — परशुराम और राम द्वारा पहली बार चढ़ाई गई कांवड़
पौराणिक कथाओं के हवाले से स्थानीय पंडितों का कहना है कि पहली बार भगवान परशुराम ने कांवड़ चढ़ाई थी और भगवान राम ने भी गंगाजल लेकर देवघर में कांवड़ चढ़ाई थी; राम ने उसे वहीं नहीं छोड़ा बल्कि अयोध्या लेकर गए — ये दंतकथाएँ कांवड़-यात्रा की धार्मिक महत्ता को रेखांकित करती हैं।